Table Of Content | |
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1. पाँच प्रकार की होती है सिद्धियाँ | पृष्ठ: 9 |
2. चित्त में परिवर्तन से बदलते है घटनाक्रम | पृष्ठ: 13 |
3. प्रकृति स्वंय पूरा करती है अपना लक्ष्य | पृष्ठ: 17 |
4. निर्माण चित्त से सम्भव है अनेक देह | पृष्ठ: 21 |
5. अनेक चित्त का निर्माण व नियंत्रण कर सकता है-योगी | पृष्ठ: 25 |
6. ध्यान से होती है सम्पूर्ण चित्त शुद्धि | पृष्ठ: 29 |
7. कर्मों की गति से पार है योगी | पृष्ठ: 33 |
8. गहरे हैं कर्म के रहस्य | पृष्ठ: 37 |
9. संस्कारों के अनुरुप घटता है-कर्मफल भोग | पृष्ठ: 41 |
10. अनादि है वासनाएँ | पृष्ठ: 45 |
11. जानें वासना के कारणों को | पृष्ठ: 49 |
12. वासना कभी नष्ट नहीं होती | पृष्ठ: 53 |
13. पल-पल रुप बदलती है वासनाएँ | पृष्ठ: 57 |
14. वासना से उत्पन्न होती है अनन्त अनुभूतियाँ | पृष्ठ: 61 |
15. चित्त परिवर्तन से बदलती है अनुभूतियाँ | पृष्ठ: 65 |
16. प्रकृति से भिन्न है चित्त का अस्तित्त्व | पृष्ठ: 69 |
17. चित्त में समाहित मनोविज्ञान | पृष्ठ: 73 |
18. चित्त का स्वामी व ज्ञाता है पुरुष | पृष्ठ: 77 |
19. स्वप्रकाशित नहीं है चित्त | पृष्ठ: 81 |
20. एक समय में एक ही ज्ञान प्रकट होता है चित्त में | पृष्ठ: 85 |
21. सम्भव है चित्त से चित्त का ज्ञान | पृष्ठ: 89 |
22. चित्त नहीं चेतन पुरुष है हमारा स्वरुप | पृष्ठ: 93 |
23. जीवन के सब अर्थ समाये हैं चित्त में | पृष्ठ: 97 |
24. असंख्य वासनाओं का घर है चित्त | पृष्ठ: 101 |
25. आत्मभावना द्वार है अध्यात्म का | पृष्ठ: 105 |
26. विवेकज्ञान के उदय से प्राप्त होता है कैवल्य | पृष्ठ: 109 |
27. निर्लिप्त होता है योगी का जीवन | पृष्ठ: 113 |
28. विवेकज्ञान से सम्भव है संस्कारों का विनाश | पृष्ठ: 117 |
29. विवेक-वैराग्य का शिखर है-धर्ममेघ समाधि | पृष्ठ: 121 |
30. क्लेश-कर्म से रहित होता है- जीवनमुक्त्त योगी | पृष्ठ: 125 |
31. आवरण के हटते ही होता है- असीम ज्ञान | पृष्ठ: 129 |
32. कृतार्थ हो जाता है योगी का जीवन | पृष्ठ: 133 |
33. कैवल्य में थम जाता है- नये जीवन का क्रम | पृष्ठ: 137 |
34. स्वयं के स्वरुप में प्रतिष्ठित हो जाना है- कैवल्य | पृष्ठ: 141 |
35. उपसंहार | पृष्ठ: 144 |
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